Text of PM’s address at the Safaigiri Summit and Awards 2015

Press Information Bureau
Government of India
Prime Minister's Office
02-October-2015 13:23 IST

Text of PM’s address at the Safaigiri Summit and Awards 2015

उपस्थित सभी महानुभव,

मेरी energy की बड़ी चर्चा की आज। लेकिन गला खराब है। और खराब इसलिए है कि सुबह से निकला हूं, काफी भाषण करके आया हूं। उसका थोड़ा प्रभाव तो रहेगा, कल ठीक हो जाएगा। अरूण जी एक बार मुझे मिलने आए तो ऐसे ही कुछ बातें चली हमारी स्‍वच्‍छता के संबंध में, और बातों-बातों में मैंने कुछ बातें उन्‍हें बताई थी। लेकिन मैं हैरान हूं कि उन्‍होंने हर बात को Letter and spirit में पकड़ा उसके पीछे लग गए और लोगों को भी प्रेरित किया, लोगों को जोड़ा। मैं उनके इस प्रयास के लिए हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, बहुत बधाई देता हूं, धन्‍यवाद करता हूं।

जिन महानुभावों को आज award मिला है, मुझे उनको सम्‍मानित करने का सौभाग्य मिला है। मुझे विश्‍वास है कि आप लोगों ने जो काम किया है वो कई लोगों के लिए प्रेरणा का कारण बनेगा और यह सिलसिला चलता ही जाएगा। आपकी सिद्धि आने वाले दिनों में और लोगों को भी इस काम को करने के लिए प्रेरित करेगी और इसलिए भी मैं आपका अभिनंदन भी करता हूं, लेकिन मैं आपसे यह भी अपेक्षा करता हूं कि जहां भी मिले अवसर मिले, आप लोगों को इस विषय पर बताइये, आपका अनुभव share कीजिए। किस प्रकार से इस काम को आपने किया, कैसे इसको अमल में लाए, कैसा परिणाम मिला, क्‍योंकि वही अपने आप में एक बहुत बड़ा प्रेरणा का का कारण बनने वाला है। आज सारे कलाकार मित्रों ने अपना रंग जमा दिया। अब मुझे तो इतना समय नहीं, मैं लाभ नहीं ले पाया, लेकिन यह आपका योगदान है। देश की युवा पीढ़ी को इस काम के लिए प्रेरित करेगा। मैं आप सबको बधाई देता हूं कि आपने इस काम को सिर-आंखों पर लिया है।

मैं देख रहा हूं कि यह एक कार्यक्रम ऐसा है, स्‍वच्‍छ भारत, जिसमें करीब-करीब सब, हर कोई मदद करता रहा है। विेशेषकर मीडिया में, खासकर के इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया ने एक मुहिम चलाई और उस मुहिम में सरकार के खिलाफ कुछ नहीं था। लोगों को दिखाते थे, वो dustbin है, फिर भी वो बाहर फैंक रहा है। कैमरे वाले दिखाते थे। फिर उसको कैमरे वाले पकड़ते थे तो वो शर्मिन्‍दगी महसूस करता था। औरों को भी लगता था, हां dustbin तो है हम क्‍यों नहीं डालते। स्‍वच्‍छता मूलत: स्‍वभाव का विषय है। और एक बार स्‍वभाव बन जाए तो फिर आप कभी गंदगी बर्दाश्‍त ही नहीं करोगे, कभी नहीं करोगे। दुर्भाग्‍य से हमारे देश में कुछ हमारी भी तो विशेषताएं हैं। हमारे यहां समाज में personal hygiene इस विषय में बहुत बड़ी जागरूकता रही है। लेकिन social hygiene में उदासीनता रही है। आपने देखा होगा कि पुराने घरों में भी बुजुर्ग होंगे। आप बाहर से आओगे तो कहेंगे पहले पैर धो धो फिर घर में आओ, जूते बाहर रखकर आओ, अंदर मत आओ। उनके मन में धार्मिक कारण होते हैं। लेकिन वो मूल रूप से एक परंपरा है। छोटी सी बात होगी कि हाथ धो धो, फलाना मत करो, ढिगना मत करो। यह परिवार में जो पुरानी पीढ़ी के लोग होंगे उन घरों में आपको ध्‍यान में आया होगा। शहर हो, गांव हो तो personal hygiene में बड़ी ही conscious society रही है हमारी। लेकिन social hygiene में हम बड़े ही उदासीन रहे। अब आवश्‍यकता है कि हम personal hygiene को महत्‍व दें और देना भी चाहिए, लेकिन social hygiene को भी उतना ही महत्‍व देना चाहिए। अगर हम यह नहीं करेंगे, दूसरा... देश आजाद होने के बाद हमारे देश में एक कमी रही। कमी यह रही कि आजादी के आंदोलन के कारण एक माहौल बना था लेकिन साथ-साथ दिमाग में फिट हो गया था कि अब हमें कुछ नहीं करना, देश आजाद हो गया, सब सरकार करेगी और वो ऐसा हमारे जहन में आ गया है कि गांव में एक छोटा गड्ढ़ा हो, तो पूरे गावं के नेता लोग मिल करके एक जीप किराए पर करेंगे। 100 किलोमीटर दूर district headquarters, state headquarters पर जाएंगे। और memorandum देंगे कि हमारे गांव में यह गड्ढ़ा है। अब यह जो किराये के पैसों से गड्ढा पर भर दें तो गढ्ढ़ा भर जाता है।

अगर आजादी के आंदोलन के बाद यह जो spirit था, वो इस तरफ अगर divert हो गया होता जिसमें यह देश हम सबको बनाना है। मैं विश्‍वास से कहता हूं जी इस देश में इतनी ताकत है। 1960 तक आते-आते तो इस देश को बना दिया होता देश के लोगों ने, लेकिन उलटा हो गया वो करेगा, उसको काम है, वे क्‍या करते हो, क्‍यों नहीं करते हो, यही.. आवश्‍यकता है अभी स्‍वच्‍छ भारत अभियान की एक कुंजी क्‍या है, चाबी क्‍या है। अगर जिस दिन लगेगा कि सरकार का कार्यक्रम है, यह कभी सफल नहीं होगा। जिस दिन लगेगा कि यह मोदी का कार्यक्रम है तो बिल्‍कुल ही निष्फल हो जाएगा।

अगर यह राजनीतिक दलों का कार्यक्रम बनता है। यह सरकार का कार्यक्रम बनता है, तब तो मैं मानता हूं हम इतना नुकसान करेंगे इस काम को जिसकी कल्‍पना नहीं कर सकते। यह हम सबका कार्यक्रम बनना चाहिए। प्रधनमंत्री को भी कहीं भी कूड़ा-कचरा फैंकने का हक नहीं है। और किसी छोटे नागरिक को भी यह हक नहीं है, यह माहौल जब तब नहीं बनाएंगे, हम देश को इस स्थिति में नहीं ला सकते। मैं जानता हूं यह जो एक दिन मैंने लाल किले पर से यह विषय को रखा था, मैं कोई सोच करके और कागज पर बड़ा कार्यक्रम बना करके गया नहीं था और वो मुझे जमता भी नहीं, वो मेरी आदत में नहीं है। मन कर गया मैंने बोल दिया। लेकिन उस समय मुझे पूरा अंदाज आया था। एक तरफ भाषण चलता था, एक तरफ thought process भी चलता था कि यह मैंने बहुत बड़ा risk लिया है। मेरे बाल नोंच लिए जाएंगे। लेकिन यह risk मैंने लिया है। और मुझे लगता है कि गांधी जी से बड़ी कोई प्रेरणा नहीं हो सकती इस विषय पर। गांधी जी की 150वीं जयंती 2019 में है। क्‍या हम गांधी की एक इच्‍छा पूरी नहीं कर सकते? क्‍या नहीं दिया गांधी ने हमको? आज हम जो कुछ भी है उस महापुरूष की बदौलत है। क्‍या हम प्रयास नहीं कर सकते? यही एक विचार था मेरी प्रेरणा के पीछे और उसी में से कार्यक्रम बन गया। और वो कार्यक्रम चल पड़ा है। और हम कल्‍पना नहीं कर सकते। इतनी बड़ी मात्रा में चल पड़ा है। देश आजाद होने के बाद मेरी गलती हो तो मुझे क्षमा करे, जो लोग मेरे पीछे से बहुत बारीकी से analysis करते हैं, वो लोग.. लेकिन मेरा अनुमान है कि देश आजाद होने के बाद संसद में कभी भी स्‍वच्‍छता पर चर्चा नहीं हुई होगी। ऐसा मेरा मत है, लेकिन पिछले एक साल में कोई सत्र ऐसा नहीं है कि स्‍वच्‍छता को ले करके चर्चा न हुई हो। हमारी पिटाई भी हुई है। कोई कल्‍पना कर सकता है, यह मीडिया.. बाकी व्‍यापार तो है ही है, Business है। सिर्फ breaking news ही नहीं, advertisement के बिना ही कार्यक्रम चलाया। यह कभी सोचा था क्‍या कि सफाई के लिए इतने सारे कलाकार, इतने सारे लोग.. आज पूरा दिनभर एक ही मंत्र सफाई, सफाई, सफाई। यह पहले नहीं हुआ होगा। अगर एक कोई बड़ा parameter इसकी success का है तो यह है जी। मुझे जितने भी लोग मिलते हैं उसमें से एक बात मुझे सुनने को मिलती है। बोले, मोदी जी, आपने हमारा जीना हराम कर दिया है। मैंने कहा, क्‍या हुआ? बोला मुझे वो मसाला खाने की आदत थी, लेकिन मेरा पोता मुझे थूकने हीं नहीं देता कहीं। वो बोले, मोदी मोदी करता है। अब यह जो लोग इस क्षेत्र में हैं, उनको पता है। ऐसा नहीं कि कोई मोदी ने आ करके स्‍वच्‍छता का विषय लिया है। कई लोग है जिन्‍होंने इस काम में जीवन खपा दिया है। कहीं Gandhian लोग है, जीवन खपा दिया है। उन सबको बराबर समझ आती है, इस चीज का कितना फायदा होगा।

आपने देखा होगा कि हमारे देश में bore-well में अगर एक बच्‍चा गिर जाए, अब तो टीवी वाले समय नहीं निकालते हैं, लेकिन पहले तो सारे टीवी कैमरा वहीं हो जाते थे। अब वो सांस ले रहा है, आंखे हिला रहा है। Army थोड़ी देर में पहुंचने वाली है। नेता लोग आए हैं, लेकिन लोग नेता पर गुस्‍सा कर रहे हैं। यह सब अपनी जगह होगा। करीब 24 घंटे और जितनी देर निकालने में लगती थी, यहां भी commentary चलती थी। और मैंने देखा था परिवारों में माताएं टीवी से हटती नहीं थी। खाना नहीं पकाती थी और रो पड़ती थी कि बच्‍चा जिंदा निकला या नहीं, बच्‍चा जिंदा निकला या नहीं यह पूरे देश में हमने, याद होगा यह दृश्‍य आपको। एक बच्‍चा bore well में मर रहा है, या मरने की संभावना पैदा हुई है। देश को बैचेन बना देता है, लेकिन हमें पता है गंदगी के कारण, गंदे पानी के कारण, गंदगी के बीच रहने के कारण Per Day एक हजार बच्‍चे मरते हैं। अब मुझे बताइये कि यह स्थिति हम कब तक चलने देंगे। एक गरीब परिवार को गंदगी के कारण फैली हुई बीमारियों का औसत average seven thousand rupees खर्च आता है जी। अगर उसके जीवन में सात हजार रुपया बच जाए, मतलब कि average महीने का 500 रुपया बच जाना।

अगर हम इस सारे विषय को इस रुप में देखें तो पता चलेगा कि हमें कोई अधिकार नहीं है गंदगी करने का। यह हमारा दायित्‍व है और यह काम यह सरकार नहीं, वो Municipality नहीं करती। उन विवादों से अगर देश को, सचमुच गांधी जी को याद करके काम करना है तो मैं सबसे यही प्रार्थना करूंगा, शुरू में जिसने जो आलोचना करनी थी, कर ली। जुड़ सकते है तो जुड़े, नहीं जुड़ सकते हैं, तो हम इसका मजाक न बनाइये। मुझे याद है काशी में आपने यह अस्‍सी घाट को आपने award दिया, वहां एक प्रभु घाट है। एक नागालैंड की बच्‍ची जो काशी में आ करके पढ़ रही थी। और उसको उसमें मन लग गया, वो प्रभु घाट की, सफाई में लग गई। धीरे-धीरे young generation जुड़ती गई। आप जाकर देखना प्रभु घाट, आह.. क्‍या सफाई की है, इन बच्‍चों ने। सारे young generation हैं, BHU (Banaras Hindu University) के students जाते हैं, सफाई करते हैं, लेकिन कुछ लोगों को पता नहीं क्‍या मजा आता है, सुबह जाकर वहीं जा करके कुछ गंदगी फैंक आना। और यह रो पड़ती थी कि इतनी मेहनत की फिर गंदा कर दिया। फिर उठाती थी, फिर साफ करती थी। कितना commitment होगा। जब मैं अभी उन लोगों से सब नौजवानों से मिला, मेरे लिए inspiration था, वो कैसा बदलाव आ रहा है। अभी बैंगलोर के स्‍कूल के बच्‍चों ने एक app बनाई और अमेरिका में एक competition में उनको invite किया गया और award जीत करके आई है। App क्‍या है – आपका कूड़ा-कचरा लेने वाले के लिए भी उसमें और देने वाले के लिए भी जगह है। एक मार्केट खड़ा कर दिया उसने App के द्वारा। और सभी आठवीं, नौंवी क्‍लास के बच्‍चे हैं, बैंगलोर के एक स्‍कूल के। अभी अमरीका जा करके अभी-अभी आएं हैं, उनको award मिला है।

यानि इतने प्रकार के लोग इस काम में लगे हैं। मुझे कल किसी ने बताया, हमारे वैंकेया जी बता रहे थे। अहमदाबाद में कोई 102 साल की कोई वयोवृद्ध माता जी हैं। वो सुबह उठ करके निकल पड़ती है अपने मौहल्‍ले में। dustbin है कि नहीं, यही उसका मिशन है, dustbin है कि नहीं। dustbin में डालो, dustbin के बाहर मत डालो। 102 साल की उम्र। आज देखिए वातावरण देखिए! कोई बेटी यह कह दें कि उसके घर में Toilet नहीं है, तो मैं शादी नहीं करूंगी। यह घटनाएं हो रही है। एक मां अपनी बकरी बेच करके कहती है कि मुझे Toilet बनाना है। बदलाव आ रहा है। और यह एक जन आंदोलन में परिवर्तित होता है, तो उसका एक परिणाम मिल रहा है। आज भी हमारे यहां खुले में शौच जाना दुनिया में 60 करोड़ लोग, world bank का रिकॉर्ड कह रहा है 60 करोड़ लोग खुले में शौच जाते हैं। और वो सारी बीमारियों की जड़ वहीं पर शुरू होती है।

शौचालय बनाने का अभियान चलाया है, जब मैंने विषय लिया तो सरकार में भी थोड़ा.. क्‍योंकि यह सरकार के कोई विषय थे ही नहीं। बजट-बजट चलता था। मैंने capacity building का काम किया। 200 कलेक्‍टर की training कर चुका हूं। देश में 600 से ज्‍यादा district हैं। सबको बुलाता हूं और उनका पूरा training करवाता हूं। क्‍योंकि capacity एक बहुत बड़ी आवश्‍यकता है। लेकिन जब हमने इस बार लगे तो खींच, खींच, खींच करके गांव के अंदर 60 लाख Toilet बनाने का संकल्‍प किया है, सरकार ने। और कल जब मैं रिपोर्टिंग ले रहा था। मैंने कहा कि देखिए अब कल 2 अक्‍तूबर है बताइये कहां पहुंचे हो। तो मुझे बताया गया कि Ninety five lakh Toilet उन्‍होंने पूरे कर दिए। 60 लाख का target तय करते हुए डरते थे, यह बदलाव आया है। स्‍कूलों में करीब चार लाख 15 हजार Toilet, कन्‍याओं के लिए समय-सीमा में बन गए। रेलवे ने करीब 5700 के Toilet, Bio-Toilet से replace कर दिए, क्‍योंकि वरना ट्रेन आती थी तो रेलवे पर सब छोडकर जाती थी, और फिर आगे।

अब यह चल रहा था जी, कोई कहां, कौन, धीरे-धीरे इसमें.. अब कुछ एक बात है, कोई भी कह सकता है कि क्‍या हुआ? यह सवाल उठ सकता है। सरकार को जवाब देना भी पड़ेगा, भाग नहीं सकते। लेकिन मैं चार हमारे साथ बराबरी की बातों का उल्‍लेख करना चाहूंगा। एक सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड एंड साउथ कोरिया। बहुत-बहुत छोटे-छोटे देश हैं, बड़े देश नहीं है। हमारे एक राज्‍य से भी छोटे हैं। सिंगापुर में वहां के प्रधानमंत्री ने 1959 में सबसे पहले, 59 में उन्‍होंने सिंगापुर की सफाई के लिए उन्‍होंने विषय शुरू किया। और तब वो एक छोटा सा मछुआरों का गांव जैसा ही था, तब सिंगापुर 59 में। लेकिन 1968 तक नहीं हो पाया। प्रधानमंत्री लगातार इस विषय को कहते रहते थे, कोशिश करते थे। 68 में वहीँ प्रधानमंत्री Lee Kuan Yew स्‍वयं इस काम को बीड़ा उठा करके निकल पड़े। 1959 यानी करीब-करीब 60 से ले करके आज जो हम सिंगापुर देख रहे हैं न, इतने लंबे समय का एक लगातार पुरूषार्थ का परिणाम है। उसी प्रकार से मलेशिया के प्रधानमंत्री उन्‍होंने भी 60 में इस विषय को उठाया और उन्‍होंने नागरिकों को, उनके पास थोड़ी कानून की ताकत भी थी। हमारे यहां तो बड़ा मुश्किल है। लेकिन उनके पास वो भी ताकत थी उनको भी 60 में शुरू किया, 1960 में शुरू किया। प्रधानमंत्री के नेतृत्‍व में इस काम को चलाया गया। जन भागीदारी का भरपूर प्रयास किया। आज मलेशिया स्थिति पर इतने सालो बाद आया है। थाइलैंड के किंग स्‍वयं इस सफाई अभियान को ले करके चल पड़े हैं। उन्‍होंने झाडू उठाया, निकल पड़े। वो भी 1960 में किया उन्‍होंने। साउथ कोरिया के राष्‍ट्रपति ये 1960 में। ये चारों एक साथ इस काम को शुरू किया सफाई का। लेकिन आज जो हम इनकी सफाई और बढि़या देश देख रहें हैं इसको आते-आते 2015 हुआ है।

हमारा देश कितना बड़ा है हमको अंदाजा है, हमारी आदतें कैसी हैं हमको अंदाजा है, देश कितना बड़ा है हमको अंदाज है, हमारी आदतें कैसी हैं, हमें पता है, हमारी कठिनाईयां क्‍या है, पता है। लेकिन गांधी एक ऐसी प्रेरणा है कि सवा करोड़ लोग अगर तय कर लें कि हमें चलना हैं, हम चल सकते हैं। यह एक विषय हिंदुस्‍तान एक विषय राजनीति से परे कर दे, आप देखिए जी बदलाव आना शुरू हो जाएगा। हर किसी को लगेगा। आज गांव के पास इतने पैसे जाते है जी, आप कल्‍पना नहीं कर सकते। अगर वो चाहे तो इसको पूरा कर सकते हैं। शहरों के लिए गांव के लिए और ज्‍यादातर हमने देखा है, आदतें सबसे बड़ा हमारा problem है। हमारा स्‍वभाव चलता है, यार चलता है, करता है। अगर एक बार हम माहौल बना दें और आजकल बना है। मैंने देखा है कि कुछ लोग मुझे कहते हैं कि वो कार ले करके कोई जाता है, अगर शीशे से बाहर अगर बोतल फैंकी तो दूसरा दोड़ता है, कार को रोकता है, वो नीचे उतारता है बोला उठाओ, बोतल को उठाओ, क्‍यों ऐसा किया, यह माहौल बन रहा है। और सबसे ज्‍यादा मुझे जो ताकत मिली है। young generation से मिली है। बालकों से मिली है। उन्‍होंने इस विषय को बराबर पकड़ा है जी। हम इस बात को आगे चलाएंगे तो मुझे विश्‍वास है कि हम बहुत बड़ी मात्रा में बदलाव ला सकते हैं।

Waste to wealth एक बहुत बड़ा profession खड़ा हुआ है। बहुत कम लोगों ने सोचा होगा कि यह भी एक Business हो सकता है। आज वो बहुत बड़ा potential business है और बहुत बड़ी मात्रा में लोग इस व्‍यवसाय में आ रहे हैं। आज सफाई करने के लिए अलग प्रकार के लोग मिल रहे हैं। Technology available हो रही है। तो Waste to wealth यह सफाई में होने वाला है और बदलाव आने वाला है, उसका लाभ मिलेगा।

कभी-कभी मैं छोटी-छोटी बातें भी बताता हूं कि भई ठीक है मानो जैसे मैं कुछ women self-help group कार्यकर्ताओं को मिला था। तो उनसे ऐसे ही मैंने एक सुझाव दिया था। बाद में उन्‍होंने शुरू किया। हमने उन्‍हें समझाया कि मंदिर का यह जितना भी कूड़ा-कचरा है वो आप उठाइये। फूल होते हैं ज्‍यादातर और उसमें से उनको अगरबत्‍ती बनाना सिखाया, सुगंध natural मिल गई उनकी गाड़ी चल पड़ी। बिक जाती है और मंदिरों की सफाई होने लग गई। कमाने वालों की कमाई होने लगी। मैंने अभी लोगों से आग्रह किया है कि अगर छोटे-छोटे नगर है तो छोटे नगर के अगर दो किलोमीटर, तीन किलोमीटर के area में हम छोटे-छोटे गड्ढ़े बनाएं। और Earthworms, केचुएं ये लाकर रखें और शहर का कूड़ा-कचरा भी वहीं पर फेंकते चले जाएं। वे अपने-आप में इतने बड़े सफाई कर्मचारी हैं ये केचुएं सारा कूड़े-कचरे का fertilizer में convert कर देते हैं और वो fertilizer बेच करके आप कमाई कर सकते हो। एक छोटे नगर के बगल में अगर ये Earthworm का उपयोग कर दिया जाए बहुत बड़ी मात्रा में सुख होता है। हर चीज के लिए बहुत बड़ी चीजों की जरूरत होती है ऐसा नहीं है। सामान्‍य चीजों से भी बदलाव लाया जा सकता है। हम इन बदलावों पर अगर बल देते हैं तो हम परिस्थिति पलट सकते हैं।

हमारे देश में recycle, ये कोई western concept नहीं है। ये भारत के मूल स्‍वभाव में था जी। throw away ये हमारे culture का हिस्‍सा ही नहीं रहा कभी। reuse करो, recycle करो। ये हमारे यहां पुराने जमाने में आपने देखा होगा कि कपड़े पुराने हो जाएं, तो फिर कोशिश करते हैं कि इसको बड़ा है तो छोटा बना करके छोटे के लिए काम आ सकता है। उसमें से भी वो करे। वो भी पूरा हो जाए तो फिर उसमें से ओढ़ने के लिए कोई गद्दा-वद्दा बन जाता है, वो करने के बाद भी वो रह जाए तो फिर सफाई के लिए उसमें से टुकड़े निकाल-निकाल करके काम करें। यानी उसका जब तक मोक्ष न हो, पूरा उपयोग करते हैं। ये हमारी परम्‍परा रही है। throw away culture ये हमारी प्राकृतिक का कभी हिस्‍सा ही नहीं रहा। हमारे यहां देखा होगा पुराने जमानों में हर घर में एक लम्‍बर रूम रहता था। पुराने जमाने के जो architecture हैं उसे देखना आप कभी। उस लम्‍बर रूम में घर की जो बूढ़ी मां होती थी कुछ भी है डाल दे रे। कोई कहेगा कि कुछ काम नहीं है मां फेंक दो। अरे रखो बेटा कभी काम आएगा। वो उसमें हर चीज फेंकती रहती थी और फिर दीपावली के समय वो देखते थे। सफाई के समय निकालते थे देखते थे। फिर उसमें से दो-चार चीजें देखों ये घर में काम आ जाएगा, ये काम आ जाएगा, कोई चीज आज मुसीबत क्‍या है जी नया ले आओ। यह स्थिति ने जो पैदा किया है, वो भी एक बहुत बड़ा कारण है। हम कैसे इन आदतों को बदलें। और यह कोई उपदेश के विषय नहीं है। हम सब अनुभव करते हैं। इन चीजों से हम रास्‍ते निकाल सकते हैं।

मुझे लगता है कि भोजन के बीच मुझे लंबे समय नहीं रहना चाहिए। और इसलिए आप सबकी भोजन में देरी हो गई, तो मैं क्षमा मांगते हुए समाप्‍त करता हूं, लेकिन मैं फिर एक बार इस प्रयास के लिए अभिनंदन करता हूं और मैं देशवासियों से प्रार्थना करता हूं कि इस देश को गंदा करने का हमें हक नहीं है। कुछ लोग तो ऐसे होते हैं कि इतने जोरों से भारत माता की जय बोलें और फिर वहीं पर थूकें । अब यह कहां भारत माता.. अब इसमें से हमें देश को बाहर लाना है।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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अतुल कुमार तिवारी, अमित कुमार , हरीश जैन, तारा, सोनिका


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